सोमवार, 13 दिसंबर 2010

मां की याद में


... पहली बार महसूस हुआ कि तकनीक ने दुनिया कितनी बदल दी है। वेंटिलेटर की मदद से पता ही नहीं चलता कि आपके अपने ने कब संसार से विदा ले ली... कब आपको अलविदा कह दिया। वेंटिलेटर में डाली गई दवाओं के प्रभाव से वो अंत तक सांस लेती रहीं... लेती रहीं। मैं देखती रह गई और माजी ने मेरे सामने दम तोड़ दिया और मैं कुछ नहीं कर सकी। डॉक्टर ने बताया कि वो जा चुकी हैं। मैं सन्न रह गई। वो लम्हा कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके साथ वो मेरी दुनिया भी ले गईं। मुझे बहू से बेटी बनाया उन्होने और अपनी बेटी को छोड़कर चलीं गईं वो। उसके बाद मुझे दुनिया की तमाम उन सच्चाईयों से रूबरू होना पड़ा जिनको देखकर, सुनकर मैं दुखी कम आश्चर्यचकित ज्यादा थी। माजी के जाने के बाद उनकी तेरहवीं के लिए मुझे बिहार अपने ससुराल जाना था। माजी के बिना घर सूना था, बहुत सूना। लेकिन जिस तरह से उनके जाने के तुरंत बाद आस-पड़ोस के लोगों, यहां तक कि अपनों ने जो व्यवहार किया वो बहुत अजीब था। सबकी आंखों में दुख कम एक अजीब सी बेचैनी देखी मैने। इंसान के जाने के बाद रीतिरिवाजों से घिरी दुनिया का आडंबर देखकर मन व्यथित हो उठा। पता नहीं किसने ये रिवाज बनाए जो जिंदा बचे सदस्यों को परेशान कर देते हैं। किसी चीज में मेरा बस नहीं था सो जो सबने कहा मैने किया। खैर, घर की मालकिन के जाने का दुख घर के हर कोने में था। हर खिड़की से झांकता मेरा अतीत मेरे वर्तमान पर हंसता नज़र आया। हर दीवार, हर बर्तन पर माजी की छाप थी। मुझे पहली बार अहसास हुआ कि माजी हमेशा जिंदा रहेंगी। हमारी यादों में, हमारी बातों में और उस अहसास में जो वो आखिरी वक्त में हमें देकर गईं। वो जहां भी हों, खुश और शांत रहें। लेखिका- कंचन पटवाल